Akbar History in Hindi | अकबर का पूरा इतिहास

 Akbar The Great

जलाल-उद्दीन-मुहम्मद अकबर (Jalal-ud-din-Muhammad Akbar)

पूरा नाम – Abul-fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar (अबुल-फ़त जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर)

जन्म – 5 अक्टूबर 1542, उमरकोट

मृत्यु – 27 अक्टूबर 1605, फ़तेहपुर सिकरी

पत्नी – मरयम-उज़-जमानी
सलीमा सुल्तान बेगम

माता-पिता – हमीदा बानु बेगम, हुमायूँ

औलाद – हसन मिर्ज़ा
हुसैन मिर्ज़ा
जहाँगीर
खानुम सुल्तान बेगम
मुराद मिर्ज़ा
दानियाल मिर्ज़ा
शकर-उन-निसा बेगम
आराम बानू बेगम
शम्स-उन-निस्सा बेगम
माहि बेगम

साम्राज्य – Mughal Empire (मुग़ल सल्तनत)

शासन –  11 February 1556 – 27 October 1605

कब्रगाह – सिकंदरा, आगरा, उत्तर प्रदेश

Akbar The Great : जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर मुग़ल सल्तनत के तीसरे सुल्तान थे उन्हें मुगल हिस्ट्री का सबसे महान राजा माना जाता है। भारत देश में मुगल सल्तनत की बुनियाद भले ही अकबर के दादा यानी जहीरूद्दीन बाबर ने रखी थी लेकिन मुग़ल सल्तनत की नींव को मजबूत करने वाले इंसान का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर है। अकबर ने अपनी बहादुरी और होशियार से मुग़ल सल्तनत को आधे से ज्यादा हिंदुस्तान पर फैला दिया था और अपने मरने से पहले इस काबिल बना दिया था कि उसकी आने वाली नस्लों ने हिन्दूस्तान पर बहुत लम्बे समय तक राज किया था। अकबर अपने दौर मे अपनी सल्तनत के लिया देवता बन गया था। लोग उस के दरबार में आकर मन्नते मांगा करते थे और उसके सामने सर झुकाया करते थे। यहां तक कि वो अपनी सल्तनत में रहने वाले लोगों की नजरों में इतना बाइज्जत और कीमती हो चुका था कि उसने अपना ही एक अलग धर्म बना दिया था और इन तमाम चीजों की वजह से ही उसका नाम हमेशा हमेशा के लिए (Akbar The Great) अकबर-द-ग्रेट पड़ गया था।

अकबर का जीवन परिचय: अकबर का पूरा नाम Abul-fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar (अबुल-फ़त जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर) था। अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को उमरकोट के इलाके में उस वक्त हुआ था जब अकबर के वालिद नसीरुद्दीन हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों अपनी दिल्ली सल्तनत गवाहने के बाद जंगलों में भटक रहे थे क्योंकि हुमायूँ उस दौर में जंगलों में भटका करते थे। इसी वजह से अकबर की परवरिश अकबर के चाचा कामरान मिर्जा ने की थी जो कि काबुल इलाके के गवर्नर हुआ करते थे अकबर के बारे में ज्यादातर इतिहासकार यह मानते हैं कि बचपन से ही अकबर बहुत ज़हीन और तेज़ थे लेकिन उनको पढ़ने लिखने का जरा भी शौक नहीं था पढाई-लिखाई से वह हमेशा ही दूर भागा करते थे लेकिन होशियार इतने थे की उन्होंने 10 साल की छोटी सी उम्र से भी पहले ही तलवारबाजी, निजाबाजी, घुड़सवारी जैसी चीजें बहुत अच्छी तरह से सीख ली थी छोटी सी उम्र में ही वह अपने से बड़े बड़े उम्र के लोगों को कुश्ती में चैलेंज किया करता था और हैरानी की बात तो यह है कि बड़े-बड़े लोगों को भी अकबर इतनी कम उम्र में हरा दिया करता था आखिरकार 1555 ई० में हुमायूँ ने सूरी खानदान से अपनी दिल्ली सल्तनत को दोबारा से छीन लिया था जिस वक्त हुमायूँ ने अपनी दिल्ली सल्तनत को दोबारा हासिल किया उस वक्त अकबर की उम्र सिर्फ 13 साल थी 1 साल बाद ही हुमायूं की अपनी लाइब्रेरी की सीढ़ियों से गिरकर मौत हो गई।

Humayun history in hindi - TS HISTORICAL
TS HISTORICAL

जिस वक़्त हुमायूँ की मौत हुई उस वक्त अकबर की उम्र सिर्फ 14 साल थी हुमायूँ की मौत के बाद मुग़ल दरबार में रहने वाले लोगों को यह डर सताने लगा था की कही मुग़ल सल्तनत में बगावत न हो जाये और ये डर सच साबित हुआ। धीरे-धीरे जगह-जगह से बगावत उठना शुरू हो गई। हुमायूँ का एक बहुत वफादार दोस्त था जिसका नाम बैरम खान था जिसने वक़्त को भांपते हुए एक सही फैसला लिया और हुमायूँ के सिर्फ 14 साल के बेटे अकबर को (11 february 1556)ई० को सुल्तान घोषित कर दिया। भले ही अकबर को खतरे को देखते हुए सुल्तान घोषित कर दिया गया था लेकिन अकबर अभी ना समझ था इसी वजह से सुल्तान भले ही अकबर बन चुका था लेकिन पूरी सल्तनत को बैरम खान ही चलाया करता था और सल्तनत का हर हुकुम बैरम खान ही जारी किया करता था लेकिन बगावत के जिस खतरे को देखते हुए बैरम खान ने एक छोटी सी उम्र के अकबर को सुल्तान बना दिया था वो खतरा अकबर के सुल्तान बनने के बाद भी नहीं टला।

Second battle of panipat | पानीपत का दूसरा युद्ध

Hemu

PaniPat Second Battle : सूरी सल्तनत की जिसे चंद दिन पहले ही हुमायूँ ने अपनी सल्तनत को वापस छीना था उसी सल्तनत के एक हिंदू सिपाह-सालार जिसका नाम हेमू था उसने बगावत कर दी और वो अपनी पूरी फौज लेकर दिल्ली की तरफ रवाना हुआ और दूसरी तरफ बैरम खान को जब इस बात की खबर हुई कि वो अपनी बड़ी फौज लेकर हमारी सल्तनत की तरफ रवाना हो गया है तो वह भी अपनी फौज लेकर दिल्ली से रवाना हो गया दोनों का आमना-सामना पानीपत के इतिहासिक मैदान में हुआ और बहुत जबरदस्त जुंग हुई, शुरू में तो ऐसा महसूस होने लगा था कि हेमू की फौज मुग़ल फौज को बड़ी आसानी से ही हरा देगी लेकिन पर अचानक से मुगलो की तरफ से चलाया हुआ एक तीर डायरेक्ट हेमू के जिस्म पर जाकर लगा जिसकी वजह से हेमू की मौत हो गई। हेमू के सिपाहियों को जब इस बात की खबर हुई के हेमू की मौत हो चुकी है तो उन्होंने पीठ दिखाकर भागना शुरू कर दिया और इस तरह से बैरम खान की सिपहसालार में मुगल सल्तनत की फौज को जीत हासिल हुई। कहा जाता है कि जिस तीर से हेमु की मौत हुई थी वह तीर अकबर ने ही चलाया था।

Bairam Khan की मौत कैसे हुई

Bairam Khan

1556 से लेकर 1560 तक यानी तकरीबन 4 साल तक अकबर भले ही शहंशाह की गद्दी पर बैठा रहा लेकिन पूरी संतलत को बैरम खान हीं चलाता रहा लेकिन जब धीरे-धीरे अकबर की उम्र 17-18 वर्ष की हुई और अकबर समझदार हुआ तो अकबर को ये महसूस होने लगा कि बैरम खान मुझे गलत तरीके से कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि बैरम खान ऐसे बहुत सारे फैसले खुद जारी कर दिया करता था जिस पर अकबर राजी नहीं हुआ करता था और जाहिर है कि अब अकबर समझदार हो चुका था इसलिए वह भी चुप बैठने वाला नहीं था। बैरम खान की तरफ से पानी सर से ऊपर जा चुका है और इसलिए अकबर ने बैरम खान को चुका था लेकिन वो बैरम खान की बहुत इज्जत किया करता था और बैरम खान को बाबा कहकर बुलाता था। अकबर ने जब बेरुम खान को वज़ीर-ए-आज़म की पद से हटा दिया और बैरम खान को बहुत सारा मालो-दौलत देकर यह मशवरा दिया कि आप हज करने चले जाएं क्योंकि भले ही अकबर सियासी मामले में बैरम खान से मुखालिफ हो चुका था लेकिन वो बैरम खान की बहुत इज्जत किया करता था और बैरम खान को बाबा कहकर बुलाता था। अकबर ने जब बेरुम खान को वज़ीर-ए-आज़म के ओहदे से हटा दिया था तो यह बात बेरुम खान को बहुत बुरी लगी वह सोचता था कि अकबर अभी भी नादान है इसी वजह से उसने यह फैसला लिया है और फिर बेरुम खान ने अकबर के खिलाफ बगावत कर दी लेकिन क्योंकि अकबर अब बहुत समझदार और होशियार हो चुका था तो उसने चंद लम्हों में ही बैरम खान को शिकस्त दे दी। अकबर के सिपाही बैरम खान को पकड़कर उनके सामने ले आये और अकबर बैरम खान की बहुत इज्जत किया करता था तो इसीलिए अकबर ने दोबारा बगावत करने के बावजूद भी बैरम खान के खिलाफ कोई भी हुकुम जारी नहीं किया। बल्कि उनको इज्जत के साथ बिठाकर दोबारा मशवरा दिया और कहा कि मेहरबानी करके हज करने चले जाएं इस बार बैरम खान हज करने के लिए रवाना हो गए लेकिन कहा जाता है कि 31 जनवरी 1561 को गुजरात के रास्ते से जाते हुए मुबारक खान लोहानी की लीडरशिप में अफगानों के एक ग्रुप ने अनहिलवाड़ पाटन के पास बैरम खान पर हमला कर दिया अफ़ग़ानिओ के हमला करने के पीछे की वजह ये बताई जाती है की उनके पिता 1555 में माछीवाड़ा की लड़ाई में मुगलों से लड़ते हुए मारे गए थे। और इसलिए अफगानो ने बैरम खान की हत्या करके अपना इन्तेक़ाम लिया था।

Din-i Ilahi | दीन-ए इलाही

अकबर जितना बहादुर था उससे कहीं ज्यादा होशियार था और यही वजह थी कि वह अपने दुश्मन को मैदान में हराने की बजाय उसे दिमागी तौर पर हराने को ज्यादा तरजी दिया करता था उसने हिंदुस्तान की ज्यादातर इलाके अपनी ताकत के जरिए से ही जीत लिए थे जिन इलाकों के बारे में उसे ये महसूस होता था कि वह उनको ताकत के तरीके से नहीं जीत सकता है उन तमाम इलाकों को उसने सियासत के जरिए से जीत लिया था उसने राजपूतों की एक बेटी जोधाबाई से शादी कर ली थी।

जिसकी वजह से महाराणा प्रताप के अलावा हिंदुस्तान के तमाम राजपूतों ने अकबर की बादशाहत को कबूल कर लिया था अकबर ने अपने महलों में गैर मुस्लिमों को बहुत बड़े बड़े पद दे रखे थे उसकी सल्तनत के दौर में उसके महल में बड़ी बड़ी पोस्ट पर हिंदू लोग बैठे हुए थे यहां तक कि अकबर कि वह टीम जिसे नवरत्न के नाम से जाना जाता है यानी जिसमें 9 वजीर थे उनमें भी तकरीबन 3 लोग हिंदू थे जिनमें से एक का नाम बीरबल एक का नाम मानसिंह और एक का नाम राजा टोडरमल था कहा जाता है कि अकबर कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले अपने टीम के इन्हीं 9 लोगों से मशवरा लिया करता था और वो लोग भी हमेशा ही अकबर के साथ जुड़े रहते थे।

TS HISTORICAL

बैरम खान की मौत के बाद जब अकबर सल्तनत चलाने के लिए पूरी तरह से आजाद हुआ तो अकबर ने अपने नवरत्न में से एक वजीर जिसका नाम अबुल फजल था उससे मशवरा कर के एक नए दिन की स्थापना की जिसका नाम Din-i Ilahi | दीन-ए इलाही था। अकबर का यह मानना था कि हर मजहब में कोई न कोई अच्छी बातें जरूर है तो इसीलिए क्यों ना हर मजहब की कुछ कुछ अच्छी बातों को निकाल कर एक नया मजहब तैयार किया जिसके जरिए तमाम मजहबी झगड़े भी खत्म हो जाएंगे अकबर ने इसी सोच को मद्देनजर रखते हुए दिन-ए-इलाही नाम के ने एक नये मजहब को तैयार किया इस मजहब में इस्लाम के साथ-साथ और दूसरे मजहब की बहुत सारी चीजों को भी शामिल किया गया था जिसे अकबर अच्छा मानता था अकबर के इस मजहब को सबसे पहले बीरबल और अबू फज़ल ने ही कुबूल किया था लेकिन अकबर के इस मजहब को हिंदुस्तान में रहने वाले लोगों ने पसंद नहीं किया था अकबर के दौर मे हिंदू धर्म से तालुक रखने वाले लोग अकबर को बहुत ज्यादा अच्छा मानने लगे थे बहुत से लोग अकबर की पूजा किया करते थे और अकबर के दरबार के बाहर लोग मन्नतें मांगने आया करते थे क्योंकि अकबर का यह नजरिया था कि हर मजहब में अच्छाई और बुराई दोनों चीजें होती हैं इसीलिए वो ईसाइयो के साथ भी पूजा किया करता था और हिंदुओं के साथ भी पूजा किया करता था और मुसलमानों के साथ मस्जिद में नमाज भी अदा किया करता था।

Battle of Haldighati | हल्दीघाटी का युद्ध

Haldighati ka yudh: महाराणा प्रताप के अलावा हिंदुस्तान के तमाम राजपूतों ने अकबर की बहादुरी और होशियारी देखते हुए अकबर की बादशाहत को कुबूल कर लिया था लेकिन महाराणा प्रताप एक ऐसे राजा थे जो आखिर तक अकबर को बादशाह मानने के लिए तैयार नहीं थे भले ही महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ कामयाब नहीं हो पाए लेकिन वह अपनी आखिरी जिंदगी तक अकबर के खिलाफ लड़ते रहे जिससे यकीनन उनकी बहादुरी साबित होती है।

आज बहुत से लोग हल्दीघाटी के युद्ध को हिंदू vs मुस्लिम के तौर पर देखते हैं लेकिन सच्चाई इसके बिलकुल उलट है आपको जानकर शायद थोड़ी हैरानी होगी कि जिस वक्त महाराणा प्रताप की मुगलों से जंग हुई थी उस वक्त फौज में अकबर खुद मौजूद नहीं थे अकबर की फौज को उस वक्त अकबर की 9 खास वज़ीरो में से एक वज़ीर जिसका नाम मानसिंह था वह लीड कर रहा था जो एक हिंदू था इससे से यह बात तो क्लियर हो जाती है कि इस जंग में दोनों फौजियों के कमांडर हिंदू ही थे जिससे हिंदू vs मुस्लिम का तो सवाल ही पैदा ही नहीं होता और दूसरी हैरानी की बात यह है कि जहां एक तरफ मुग़लो की फौज मे बहुत सारे हिंदू मौजूद थे जो महाराणा प्रताप के खिलाफ लड़ रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ महाराणा प्रताप की फौज में भी बहुत से मुस्लिम मौजूद थे बल्कि महाराणा प्रताप की फौज में तो हकीम खान सूर जैसे बड़े-बड़े मुस्लिम सरदार भी मौजूद थे जो इस बात को साबित करते हैं कि यह लड़ाई हिंदू vs मुस्लिम की नहीं थी लेकिन अगर बात की जाए इस लड़ाई के नतीजे के बारे में तो ये लड़ाई मानसिंह यानी मुग़ल फ़ौज़ ने जीत ली थी और महाराणा प्रताप की इस जंग में हार हुई थी और इस हार के साथ ही मुग़लो के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट यानी महाराणा प्रताप भी हट चुका था।

Akbarnama | अकबरनामा

अकबरनामा, या द बुक ऑफ अकबर, अकबर के शासनकाल का इतिहास है, तीसरा मुगल सम्राट,जिसे खुद अकबर ने बनवाया था और इसे दरबारी इतिहासकार और जीवनी लेखक अबुल-फजल इब्न मुबारक ने लिखा था। अकबरनामा का पहला शब्द अकबर के जन्म, तैमूर की पारिवारिक इतिहास ,बाबर और हुमायूँ के शासनकाल और दिल्ली के सूरी सुल्तानों के बारे में है। दूसरा खंड 1602 के बाद से अकबर के शासनकाल के साथ-साथ उसके पूरे शासनकाल में हुई घटनाओं के बारे मे बताता है।

Death of Akbar | अकबर की मौत कैसे हुई | Tomb of Akbar

मुगल सम्राट अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर, 1605 को हुई थी। महान मुगल बादशाह अकबर की उनके 63वें जन्मदिन के दस दिन बाद उनकी राजधानी आगरा में पेचिश से मृत्यु हो गई थी। अकबर को सिकंदरा (आगरा) के मकबरे में दफनाया गया था।


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