Salahuddin Ayyubi kon tha – सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी कौन थे ?
Salahuddin Ayyubi kon tha – सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी कौन थे ?
Salahuddin Ayyubi kon tha : सलाहुद्दीन अयूबी इस्लामी इतिहास में एक चमकता हुआ नायक है जो अपने इंसाफ और दयालुता के लिए मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा समान रूप से सम्मानित है। यह 1137 ई० की बात है। इराकी शहर तिकरित में एक जंगी सल्तनत के अमीर नजमुद्दीन अयूब के घर एक लड़के ने जन्म लिया जिसका नाम युसूफ रखा गया और जिसे आज पूरी दुनिया सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के नाम से जानती है।
सलाहुद्दीन अय्यूबी का पूरा नाम – Ṣalāḥ ad-Dīn Yūsuf ibn Ayyūb (सला-अद-दीन युसूफ इब्न अय्यूबी) था।सलाहुद्दीन अय्यूबी का पालन-पोषण उनके चाचा शिरकुह ने किया था, जो इतिहास के अनुसार जांगी सल्तनत में एक कमांडर थे। उन्होंने युद्ध तकनीकों में प्रशिक्षण और युद्ध गतिविधियों में सलाहुद्दीन अयूबी को साथ रखते थे। और उन्हें जंगी मालूमात देते थे।
Ayyubi Saltanat ki Shuruat – अयूबी साम्राज्य का उदय
सलाहुद्दीन अय्यूबी अपनी बुद्धिमत्ता और आक्रामकता के कारण जांगी सल्तनत के रैंकों के माध्यम से तेजी से बढ़ा। 1169 ई० में मिस्र पर आक्रमण के बाद उन्हें मिस्र का गवर्नर नियुक्त किया गया था। नूरुद्दीन जांगी की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी साम्राज्य को संभाल नहीं सके। 1171 ईस्वी में सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अयूबी साम्राज्य की नींव रखी। और 1182 ई० तक, उन्होंने सीरिया, मिस्र और अलेप्पो पर विजय प्राप्त की और उन्हें अपने राज्य में शामिल कर लिया। सलादीन की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा जेरूसलम को ले जाना था। हजरत उमर फारूक के शासनकाल के दौरान, पहले मुस्लिम किबला, जेरूसलम पर विजय प्राप्त की गई थी। प्रथम धर्मयुद्ध के बाद मुसलमानों की आंतरिक उथल-पुथल के कारण, जेरूसलम को क्रूसेडरों द्वारा जीत लिया गया था। 1177 ई० में, सलाह-उद-दीन अयूबी ने यरूशलेम पर अपना पहला आक्रमण शुरू किया। और वह सफल होने में विफल रहे। सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपना दूसरा हमला दो साल बाद 1179 ई० में किया, जिसमें यरूशलेम का राजा हार गया था लेकिन भागने में सफल रहा। यरुशलम के राजा और सलाहुद्दीन ने 1180 ई. में एक शांति अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन समझौता ज्यादा दिन नहीं चला। किर्क किले के गवर्नर रेनाल्ड एक उत्साही ईसाई थे जिन्होंने हज के रास्ते में तीर्थयात्रियों पर हमला किया और उन्हें मार डाला।
सुल्तान-सलाहुद्दीन-अयूबी ने किंग ऑफ़ यरूशलेम से रोनाल्ड को सजा देने का मुतालबा किया लेकिन किंग ऑफ़ यरूशलेम ने अमल नहीं किया नतीजतन, रेनाल्ड और भी अधिक ताकत हासिल करता है, और वह मुस्लिम पवित्र शहर मक्का पर हमला करने के लिए एक सेना भेजता है। रास्ते में सलाहुद्दीन अय्यूबी की सेना ने रेनाल्ड की सेना को हरा दिया। यरूशलेम के राजा की असामयिक मृत्यु के बाद, रेनाल्ड ने मुसलमानों पर हमला करना और उनका कतल-ए-आम करना जारी रखा। सलादीन ने घटना के बारे में जानने के बाद रेनाल्ड को अपने हाथों से मारने की कसम खाई।
Battle of Hattin – Baitul Muqaddas ki fateh (हत्तीन का युद्ध – बैतुल मुक़द्दस की फ़तेह)
सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की हमेशा से ही बैतूल मुक़द्दस को फ़तेह करने की ख्वाहिश थी। जब नूरूद्दीन जंगी की बफात हुई तो कोई भी ऐसा काबिल शख्स मौजूद नहीं था जो उनके के बाद तख़्त पर बैठ सके। लिहाज़ा तमाम लोगो ने मशवरा करके नूरूद्दीन जंगी की पूरी सल्तनत को सलाहुद्दीन अय्यूबी के हाथो में सोप दी। और सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी को जब तख़्त पर बिठाया गया तो उनकी उम्र सिर्फ 21साल की थी। अब सलाहुद्दीन अय्यूबी को बैतूल मुक़द्दस को फ़तेह करने का वो मौका मिला जिसकी उन्हें हमेशा से ही तलाश थी। सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने मिश्र के तख़्त पर बैठते ही बैतूल मुक़द्दस को फ़तेह करने को ही अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लिया था सलाहुद्दीन अय्यूबी हमेशा ही बैतूल मुक़द्दस को फ़तेह करने के बारे में सोचते रहते थे। जब सलाहुद्दीन अय्यूबी ने मिस्र की सारी मुश्किलों से छुटकारा पा लिया और मिस्र में अपनी सल्तनत को बहुत ज्यादा मजबूत कर लिया। तो उन्होंने बैतूल मुक़द्दस के रास्ते पर निकलने का फैसला किया और सलाहुदीन अय्यूबी अपनी फौज के साथ बैतूल मुक़द्दस को फ़तेह करने के लिये यरूशलेम की ओर निकल पड़े।
सलाहुद्दीन-दीन-अय्यूबी एक बड़ी सेना के साथ, यरूशलेम की ओर बढ़ गय। इसी दौरान ( Battle of Hattin ) हत्तीन का युद्ध हुआ। इस लड़ाई में क्रुसेडर्स बुरी तरह पराजित हुए, उनके लगभग 30,000 योद्धा मारे गए और हज़ारो सिपाही पकडे गये। उस लड़ाई के दौरान सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने रेनाल्ड को पकड़ लिया और उसकी हत्या कर दी। इस युद्ध के बाद सुल्तान सलाहुद्दीन ने यरूशलेम को घेर लिया और एक सप्ताह बाद यरूशलेम को जीत लिया गया। सौ वर्षों के बाद, मुसलमानों ने यरूशलेम पर फिर से अधिकार कर लिया। सलाहुद्दीन एक साहसी व्यक्ति थे। जो, धर्मयुद्ध के दौरान, क्रूसेडरों के साथ इतना अच्छा व्यवहार करते थे कि ईसाई अब भी उनका बहुत सम्मान करते हैं।
Baitul Muqaddas kahan ha – बैतूल मुक़द्दस का इतिहास
फिलिस्तीन के जेरुसलम में मौजूद मस्जिद-ए-अक्सा जिसे हम बैतूल मुक़द्दस के नाम से जानते है वो दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जिस जगह पर तीन धर्मो के मानने वाले लोग अपना अपना हक़ जताते है। यानि मस्जिद-ए-अक्सा एक ऐसी जगह है जो ईसाई धर्म में भी बहुत ज्यादा अहमियत रखती है और यहूदी भी इसे बहुत अहमीयत देते है और तीसरी तरफ इस्लाम के मानने वाले लोग भी बैतूल मुक़द्दस को बहुत ज्यादा अहमीयत देते है और बैतूल मुक़द्दस को इस्लाम का दिल मन जाता है क्योकि बैतूल मुक़द्दस इस्लाम का क़िब्ला-ए-अव्वल है यानि काबा-ए -शरीफ से पहले क़िब्ला-ए-अव्वल की तरफ मुँह करके नमाज़ अदा की जाती थी और यही वजह है इस्लाम मै बैतूल मुक़द्दस को इतनी ज्यादा अहमियत दी गई है यानि इस्लाम में काबा-ए-शरीफ के बाद अगर सबसे बड़ा मर्तबा किसी ईमारत को समझा जाता है तो वो बैतूल मुक़द्दस है। बैतूल मुक़द्दस से तीन मजहबो की अकीदत के जुड़े होने की वजह से ही हमेशा से ही मुस्लमानो, यहुदिओं, और ईसाइयों के बिच क़िब्ला-ए-अव्वल पर अपना हक़ जताने के लिये जंगे होती आई है।
Death of Sultan-Salahuddin-Ayyubi – सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की मौत
4 मार्च 1193 ई० को तेज बुखार होने के कारण सुल्तान-सलाहुद्दीन-अय्यूबी इन्तेकाल कर गए। सुल्तान-सलाहुद्दीन-अय्यूबी ने अपनी सारी जायदात को दान कर दिया था। जीवनकाल में, उन्होंने सौ से अधिक युद्ध लड़े और बीस वर्षों तक शासन किया। उनका जीवन बहुत सरल था; उन्होंने अपने लिय कभी कोई महल नहीं बनवाया। और उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा यरूशलेम की विजय पर खर्च कर दिया। उन्होंने अपना पूरी ज़िन्दगी तंबू में या युद्ध के मैदान में अपने सिपाहियों के साथ बितायी। सुल्तान-सलाहुद्दीन-अय्यूबी को सीरिया के दमिश्क में दफनाया गया।
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